नारायण वामन तिलक: एक कवि की यात्रा यीशु तक

महाराष्ट्र के कवि-संत जिन्होंने यीशु का अनुसरण किया

नारायण वामन तिलक (1862–1919) एक प्रसिद्ध मराठी कवि, हिंदू विद्वान और आध्यात्मिक साधक थे जिनका जीवन यीशु (Yeshu) की शिक्षाओं से पूरी तरह बदल गया। एक सम्मानित ब्राह्मण परिवार में जन्मे और संस्कृत व हिंदू परंपराओं में शिक्षित तिलक ने सत्य की खोज शास्त्रों, योग और दर्शन से की। लेकिन, उन्हें “पर्वत उपदेश” (Sermon on the Mount) में वह शांति और उद्देश्य मिला जिसकी वे लंबे समय से तलाश कर रहे थे। मसीह को सच्चे गुरु के रूप में स्वीकार करते हुए, उन्होंने व्यक्तिगत हानि और सामाजिक विरोध सहा, लेकिन रचनात्मकता और विश्वास के साथ उत्तर दिया—अपना विश्वास भारतीय कविता, संगीत और सांस्कृतिक रूपों के माध्यम से व्यक्त किया जो आज भी प्रेरित करते हैं।


तिलक ने कैसे यीशु में विश्वास किया

नारायण वामन तिलक का यीशु (Yeshu) में विश्वास एक लंबे और ईमानदार आध्यात्मिक खोज से निकला। संस्कृत और वेदों में गहराई से जड़े एक हिंदू विद्वान होने के नाते तिलक ने कई मार्गों का अन्वेषण किया—जिसमें योग भी शामिल था—लेकिन उन्हें स्थायी शांति नहीं मिली। उनका निर्णायक क्षण तब आया जब उन्होंने नया नियम (New Testament) पढ़ा और पर्वत उपदेश ने उनकी आत्मा को गहराई से छू लिया। बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि मसीह की शिक्षाओं ने “हिंदू दर्शन की सबसे कठिन समस्याओं का उत्तर प्रदान किया।” उन्होंने यीशु में सत्य और करुणा का अद्वितीय संगम देखा—जो केवल मार्ग सिखाने वाला नहीं था बल्कि स्वयं मार्ग था। हिंदू से मसीह में परिवर्तित हुए लोगों से हुई बातचीत ने भी उन्हें प्रभावित किया। उन्होंने देखा कि यीशु का अनुसरण करना भारत के प्रति अपने प्रेम को छोड़ना नहीं है, बल्कि उसे और गहराई से पूरा करना है। बहुत प्रार्थना, मनन और आंतरिक संघर्ष के बाद, तिलक ने निर्णायक कदम उठाया। 10 फरवरी 1895 को उन्होंने बंबई में बपतिस्मा लिया—एक साहसिक कार्य जिसने उन्हें अपने समुदाय से अलग कर दिया। उनकी पत्नी इस निर्णय से गहरे दुखी हुईं और पहले उन्हें छोड़कर चली गईं। लेकिन समय के साथ, उन्होंने उनके जीवन में परिवर्तन देखा और स्वयं भी मसीह को स्वीकार किया। तिलक का परिवर्तन अपनी संस्कृति का अस्वीकार नहीं बल्कि उनकी आध्यात्मिक लालसा की परिपूर्ति था। उन्होंने मसीह को सतगुरु—सच्चा शिक्षक—के रूप में पहचाना जो भारत और मानव दोनों के हृदय को संतुष्ट कर सकता है।


सेवा और संदेश

यीशु में विश्वास लाने के बाद, नारायण वामन तिलक ने अपना जीवन इस प्रकार मसीह को साझा करने में समर्पित किया जिससे भारत की संस्कृति का सम्मान हो और भारतीय हृदयों को स्पर्श मिले। उन्होंने अमेरिकन मराठी मिशन के साथ सेवा की, भारतीय दर्शन पढ़ाया और पादरी बने, लेकिन उनका असली मिशन था—कविता, संगीत, कहानी और लेखन के माध्यम से सब तक यीशु का संदेश पहुँचाना। तिलक के भजन और कीर्तन, मराठी भक्ति परंपरा से प्रेरित, मसीह के प्रेम को परिचित रूपों में व्यक्त करते थे। वे एक सच्ची भारतीय आस्था की अभिलाषा रखते थे—जो मसीह में निहित हो, न कि औपनिवेशिक प्रभाव में—और साहसपूर्वक घोषणा करते थे कि यीशु भारत के सच्चे गुरु हैं।


विरासत और प्रभाव

नारायण वामन तिलक की विरासत भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन में जीवित है। उन्होंने दिखाया कि यीशु का अनुसरण करना भारतीय पहचान को त्यागना नहीं है, बल्कि मसीह के माध्यम से उसे पूरा करना है। उनके भक्ति-गीत और भजन, मराठी भक्ति परंपरा में जड़े हुए, एक विशिष्ट भारतीय मसीही विश्वास को स्वर देते थे और आज भी प्रिय हैं। कीर्तन और संदर्भित शिक्षण के माध्यम से, उन्होंने दूसरों को प्रेरित किया कि सुसमाचार को परिचित और दिल से जुड़े तरीकों से साझा करें। तिलक ने चर्च को भी एक स्वागत योग्य संगति के रूप में देखा जो मसीह पर केंद्रित हो, न कि पश्चिमी रूपों पर। उनका जीवन और गवाही भारतीय मसीही विश्वासियों को यह प्रोत्साहित करती है कि वे अपने उत्तराधिकार का सम्मान करते हुए पूर्ण रूप से यीशु का अनुसरण करें।


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